डॉ पुरुषोत्तम अग्रवाल क्रेडिट: बुक लवर |
आज बहुत दिनों बाद हिंदी साहित्य से रूबरू होने का मौका
मिला| अवसर था डॉ. पुरुषोत्तम अग्रवाल की पुस्तक के विमोचन का| किताब का नाम है
“हिंदी सराय : अस्त्राखान वाया येरेवान”| विमोचन डॉ. कर्ण सिंह द्वारा किया गया जो
कश्मीर के महाराजा हरी सिंह के पुत्र हैं और राज्य सभा सांसद भी हैं| अस्त्राखान
रूस में है और येरेवान अर्मेनिया की राजधानी है| यह किताब वैसे तो अग्रवालजी की
येरेवान और अस्त्राखान यात्रा का विवरण है, पर साथ ही साथ उन्होंने १७वीं सदी में
अस्त्राखान में जाकर बसे भारतीयों के बारे में भी बात की है| जिस तरह से उन्होंने
इतिहास, संस्कृति और विचारधाराओं को अपनी किताब में कुशलता से बुना है, उसके लिए
कई वक्ताओं ने उनकी पुस्तक को मात्र पाँवों की यात्रा का विवरण की जगह “विचारों की
यात्रा” का वर्णन कहा|
पहली वक्ता थीं सुश्री मन्नू मित्तल जो जवाहरलाल
विश्वविद्यालय में इतिहास ही प्राध्यापिका हैं| उन्होनें एक बड़ी रोचक बात बताई –
हम जो कपड़ों में “अस्तर” लगाते हैं, वो शब्द अस्त्राखान से आया है| हुआ यों की
अस्त्राखान में कपड़ों का, खासकर फ़र का व्यापार होता था| और पहले कपड़ों में फ़र
लगाया जाता था इसलिए वो अस्तर हो गया| संस्कृति के आदान-प्रदान के ऐसे कई सबूत
मिलते हैं, जैसे कि कोणार्क के मंदिर में सूर्य देवता स्लाविक जूते पहने हुए हैं
जबकि कोई भी हिन्दू देवी-देवता जूते पहने हुए नहीं दिखाए जाते|