Monday, November 26, 2012

विचारों की यात्रा

डॉ पुरुषोत्तम अग्रवाल
क्रेडिट: बुक लवर 

आज बहुत दिनों बाद हिंदी साहित्य से रूबरू होने का मौका मिला| अवसर था डॉ. पुरुषोत्तम अग्रवाल की पुस्तक के विमोचन का| किताब का नाम है “हिंदी सराय : अस्त्राखान वाया येरेवान”| विमोचन डॉ. कर्ण सिंह द्वारा किया गया जो कश्मीर के महाराजा हरी सिंह के पुत्र हैं और राज्य सभा सांसद भी हैं| अस्त्राखान रूस में है और येरेवान अर्मेनिया की राजधानी है| यह किताब वैसे तो अग्रवालजी की येरेवान और अस्त्राखान यात्रा का विवरण है, पर साथ ही साथ उन्होंने १७वीं सदी में अस्त्राखान में जाकर बसे भारतीयों के बारे में भी बात की है| जिस तरह से उन्होंने इतिहास, संस्कृति और विचारधाराओं को अपनी किताब में कुशलता से बुना है, उसके लिए कई वक्ताओं ने उनकी पुस्तक को मात्र पाँवों की यात्रा का विवरण की जगह “विचारों की यात्रा” का वर्णन कहा|

पहली वक्ता थीं सुश्री मन्नू मित्तल जो जवाहरलाल विश्वविद्यालय में इतिहास ही प्राध्यापिका हैं| उन्होनें एक बड़ी रोचक बात बताई – हम जो कपड़ों में “अस्तर” लगाते हैं, वो शब्द अस्त्राखान से आया है| हुआ यों की अस्त्राखान में कपड़ों का, खासकर फ़र का व्यापार होता था| और पहले कपड़ों में फ़र लगाया जाता था इसलिए वो अस्तर हो गया| संस्कृति के आदान-प्रदान के ऐसे कई सबूत मिलते हैं, जैसे कि कोणार्क के मंदिर में सूर्य देवता स्लाविक जूते पहने हुए हैं जबकि कोई भी हिन्दू देवी-देवता जूते पहने हुए नहीं दिखाए जाते|

Sunday, November 4, 2012

Chandni Chowk : A Heritage Walk

The alarm rings at 8, I want to sleep a little more on this hazy Sunday morning. But, I get up because the glimmer of Chandni Chowk beckons. A heritage walk to Jama Masjid nestled withing the old, walled city of Shahjahanabad is an exercise in seeing fleeting glimpses of the 17th and 19th century. The walk director conjures up images of a proud Shah Jahan sauntering into his beautiful city in 1648 and Mirza Ghalib lamenting its demise after the freedom struggle of 1857.

Isfahan during 17th century. Credit: Isfahan Municipality Portal
Shah Jahan's new capital was built to outshine the city of Isfahan in Persia, and it did so. Shahjahanabad was a gorgeous walled city with 14 gates and a webbed layout. Delhi as a city has been constantly recreated and this counts as the 6th among the 7 Delhis. 4 of Shahjahanabad's gates exist as structures today: Kashmiri gate, Ajmeri gate, Turkman gate and Delhi gate. We saw Kashimiri gate during the heritage walk on the 1857 mutiny.

Credit: www.traveladventures.org
This walk began at Chawri Bazaar metro station and ended at Chandni Chowk metro station. But, this little space houses sprawling dimensions of heritage.