Showing posts with label Somnath. Show all posts
Showing posts with label Somnath. Show all posts

Wednesday, October 7, 2009

सू करू छे

पिछला आधा हफ्ता ट्रेन में ही गुजरा । पहले वास्को से जबलपुर, फिर जबलपुर से सोमनाथ और वापिस – ९६ घंटे का सफर । गुजरात मैं पहली बार गई थी, खमण- ढोकले तो नज़र नही आए पर अमूल की दुकान हर स्टेशन पर थी । गुजराती नमकीन लज़ीज़ होते हैं पर ट्रेन में तो दाने-पानी को तरस गए । वो तो घरवालों के साथ थी तो खाने का एक थैला साथ था, वरना, गए थे । हाँ राजकोट और जैतलसर अच्छे शहर थे । राजकोट में अमूल श्रीखण्ड खाया तो अणुशक्तिनगर का श्रीखण्ड याद आ गया । { अणुशक्तिनगर -> देखें I love Mumbai } । ऐसे ही जैतलसर के भजिये याद रहेंगे ।

पेट पूजा से आगे चलते हैं उसके एक स्त्रोत पर। सोमनाथ में गाय-बैल थोक में हैं । गुजरात में 'दूधो नहाओ' ज़रूर होता होगा अगर अमूल और वाडीलाल सब बेच न डालते हों । एक ही शहर में हर तरह का पशु पालन दिख गया - गाय-बैल, बकरियाँ, भेड़ें, मुर्गे और गधे ।

सोमनाथ मन्दिर परिसर में बहुत सारे कबूतर रहते हैं । दाना चुगाते लोग और दौड़-दौड़कर कबूतर उड़ाते बच्चे दोंनों ही सुंदर छवि बनाते हैं । मंदिरवाले शायद साम्यवादी हैं इसलिए कुत्ते और शूकर भी मौजूद होते हैं ।

अगर आप कभी सोमनाथ जाएँ तो गुमने का कोई डर नहीं है । जिस जगह से समुद्र-मछलियों की तेज़ बदबू शुरू हो जाए, बस समझियेगा पहुँच गए। सोमनाथ से लेकर दीव त एक भी मछली बाज़ार नहीं दिखा पर गंध 'आपके साथ सदा के लिए' । गोवा में तो यह धूप कभी नहीं महकी । पर गोवा जैसी ठंडी-तेज़ मस्त हवाएं भी हैं सोमनाथ में । स्टेशन पर ट्रेन की पटरियाँ खत्म कर दी गई हैं की कहीं ट्रेन समुद्र में न कूद जाए ।

सोमनाथ से दीव के रास्ते में एक नए तरह का रिक्शा देखने को मिला । आगे से मोटरसाईकिल, पीछे से ट्रॉली। फोटो में देख सकते हैं आप। बैठने का आनंद उठाने का मन था, पर सफर सिर्फ़ इन्डिका में कटा।

यहाँ पर स्टेशन से मन्दिर पहुँचने में ही इतनी गलियाँ हैं की होश फाख्ता हो जाएँ। बनारस घूमी हूँ, उसे मात देती हैं ये गलियाँ। पर इतनी गन्दगी होगी ये सोचा न था। सोमनाथ एक तीर्थस्थल है, पर ये मेरा देखा हुआ सबसे गन्दा क़स्बा है।

ये थे मेरे गुजरात भ्रमण के कुछ अनुभव। गुजराती लिपि देवनागरी से मिलती-जुलती है। कुछ अक्षर अलग हैं जैसे क -> ક । गुजराती में उसे डाँट कर सीधा खड़ा कर दिया गया है। बेचारा मुँह बाए खड़ा रहता है।
दीव और गोवा नाम पढ़कर एक सवाल उठा मन में हिन्दी में गोआ गोवा और दियू दीव क्यों हो जाता है? अगर दिमाग की बत्ती जले तो अवश्य बताएं ।